मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान
(आयुष-विभाग, स्वास्थ एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार के अन्तर्गत स्वायत्ता निकाय ६८ अशोक रोड गोल डाक खाना के समीप, नई दिल्ली-110001
मूल्य: 120रू.
E-mail:- mdniy@yahoo.co.in
Website:- www.yogamdniy.nic.in
आयुर्वेद परिचय
योग विद्यार्थियों हेतु
भारतीय परम्परा में मानव के शरीर सहित समग्र सृष्टि की रचना पर दो दृष्टि से विचार किया गया है। एक दृष्टि शरीर सहित समग्र सृष्टि को पांच भौतिक अर्थात् पृथिवी जल अग्नि वायु और आकाश की समष्टि अर्थात् इन सबके योग से उत्पन्न मानती है। दूसरी दृष्टि इसे त्रिगुणत्मक अर्थात् सत्त्व- रजस्-- तमस् की समष्टि से उत्पन्न मानती है। गुण किसी द्रव्य में विद्यमान धर्म होता है। योग दर्शन इन गुणों को केन्द्र में रखकर चित्त्वृत्ति निरोध रूप, समाधि से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है। दूसरी ओर आयुर्वेद इन्हीं पाँच महाभूतों पर आधारित दोष- धातु- मल के संतुलन को आरोग्य एवं असंतुलन को रोग मानकर आरोग्य की रक्षा और आतुर को आरोग्य प्रदान करता है। यद्यपि आयुर्वेद में भी सत्त्वावजय को चिक्त्सिा का एक माध्यम माना है और सत्त्व तीन गुणों में अन्यतम है जो चित्त का प्रधान उपादान है किन्तु प्रधानता उसमें वात पित्त कफ को प्रकृतिस्थ करने को ही दी गयी है। इस अन्तर के होते हुए भी दोनों विज्ञानों का लक्ष्य कुछ अन्तर से एक ही है। आयुर्वेद में भी ‘धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यम्मूलमुत्तमम्। रोगगस्तस्यापहत्र्तारः श्रेयसो जीवितस्य च।’ इस सिद्धान्त कथन में मोक्ष को अन्तिम साध्य और रोग निवृत्ति (आरोग्य) को उसका साधन स्वीकार ही किया है।
प्रस्तुत पुस्तक में आयुर्वेद और योग की अनुसंधनातमक आवश्यक्ता एवं सरल भाषा में वर्णन किया गया है। जिसका लाभ प्रत्येक जो आयुर्वेद के सामंन्जस्य को जानने के इच्र्छुक विद्यार्थी को अवश्य मिलेगा।